મંગળવાર, 20 નવેમ્બર, 2012

इतिहास औदिच्य ब्राह्मण/रचनात्मक




Ruद्र महालय खंड काव्य

लेबल: इतिहास औदिच्य ब्राह्मण/रचनात्मक
"जय गोविन्द माधव"
औदिच्य बंधुओ का गोरव सिद्धपुर गुजरात का रूद्र महल के निर्माण और विध्वंस की गाथा जो औदिच्य ब्राम्हणों की उत्त्पति की गाथा भी हे ,इस काव्य मय वर्णन में मिलती हे| यह पड़ने योग्य हे| रूद्र महालय
खंड काव्य
आभार
भारतीय संसक्रति में "शिव" एवं ब्राम्हण दोनों का शीर्षस्थ स्थान हे। शिव को महादेव एवं ब्राम्हण को भूमिदेव की संज्ञा से अलंकरत किया गया हे| भूमिदेव ब्राम्हण में भी शीर्षस्थ सुशोभित– औदीच्यब्राम्हण हे| औदीच्यों के इष्टदेव "रुद्र" का प्रतिरूप –रुद्र महाराज | इस क्रम से इस प्रतिक्रम मुख्य "सूर्य" प्रतिपादित हे| रुद्र महालय के भग्नावशेष औदीच्य ब्राम्हण की स्थिति के ही प्रतिरूप हे, पर बात भिन्न हे की यह कटु सत्य किसी के ह्रदय में टीस उत्पन्न करता हे|
आज औदीच्य ब्राम्हण का ध्यान इस सिद्धपीठ की ओर आकर्षित हुआ हे | एसा प्रतीत होता हे की इस पवित्र पीठ के दुर्भाग्य रूपी कम देव को भस्म करने के लिए स्वयं शंकर ने तीसरा नेत्र खोला हे|
ज्ञातीय बंधु रुद्र महालय के इतिव्रत्त, वेभव, एवं पाटन से परिचित हो सकें, इस हेतु मेने यह लघु प्रयास किया हे| इस रचना के अनुकूल मनोव्रति बनाने में एवं ज्ञान का स्तर उच्च स्थिति में लाने में, सिद्धपुर निवासी श्री दशरथ लालजी शुक्ल, श्री प्रेम वल्लभ जी शर्मा, अरुण प्रसाद जी त्रिवेदी का विशेष सहयोग रहा हे|  इसके साथ ही श्री स्थल प्रकाश, ब्रम्हाण उत्पत्ति मार्तण्ड, औदीच्य प्रकाश {महुआ से प्रकाशित} औदीच्य बंधु , औदीच्य संदेश, गुजरात के गोरव ओरपाटन की प्रभुता [लेखक के॰एम॰मुंशी] , 'सिद्धराज' [मेथली शरण गुप्त] , 'सोना ओर खून' [आचार्य चतुरसेन]. का सहयोग लियाहे| प्रसिद्ध इतिहास वेत्ता वल्लभ विध्यानगर निवासी श्री अम्रत वसंत पण्ड्या, पं॰ राधेश्याम द्विवेदी एवं कमालगंज फरुखाबाद निवासी श्री स्व पं हरीशंकर जी दवे, उदयपुर के श्री पं भीमशंकर जी , बंदायु के डॉ गंगा सहाय शर्मा, ओर डॉ गोवर्धन नाथ शुक्ल अलीगढ़ वि॰विध्या॰ का भी विशेष सहयोग रहा हे|  

उक्त ग्रंथ के लिखने मे उपरोक्त के अतिरिक्त जाने-अनजाने अनेक व्यक्तियों का सहयोग भी रहा मेँ उनका आभारी हूँ|                              
डॉ॰ ओ॰ पी॰ व्यास



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