प्राक्कथन
जय रुद्र महालय (खण्ड काव्य)
डॉ॰ ओ॰ पी॰ व्यास गुना म॰ प्र॰ द्वारा रचित इस पुस्तक मे औदीच्य ब्रम्हाण समाज के गोरव सिद्धपुर गुजरात का रूद्र महल के निर्माण और विध्वंस की गाथा जो औदिच्य ब्राम्हणों की उत्त्पति की गाथा भी हे, इस काव्य मय वर्णन में मिलती हे|
10 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध मे गुजरात की राजधानी पाटन थी| महाराजा मूलराज सोलंकी प्रतापी राजा हुए थे | सिद्धपुर (श्री स्थल) प्राचीन सिद्धपीठ थी| महाराज मूलराज ने अपने मातुल (मामा) सामंत सिंह का वाढ कर पाटण की राजगद्दी प्राप्त की थी| सम्पूर्ण भारत के सर्वाधिक एश्वर्यशाली राज्य कायम किया| व्रद्धावस्था में पश्चाताप वश "रुद्र महालय" जिसमें एक सहस्त्र शिव लिंगो वाला एक सहस्त्र मंदिरों का विशाल रुद्र महालय या रुद्र की माला के समान मंदिर बनवाने का बनाने का का विचार उनके मन मे आया |
इस संबद्ध में निम्न पद प्रसिद्ध हे |
"सुत सोलंकी वंशनों, कपटेलीध्यों राज, रुद्रमाल आरम्भियों, पातक टलवावास|
संबत अग्यार से ओगणी से,सोलंकी सुत जाण,रुद्रमाल स्थापना माघ मास परमाण|
क्रष्ण पक्ष ने चतुर्दशी, वार सोम निरधार, शंकर सधरे पुणिया। नाम शंभू जुगधार|
सिद्धपुर पातक नाशनी पुण्य सलिला सरस्वती नदी के पावन तट पर स्थित हे| महर्षि कर्दम की तपोभूमि हे| जगन्माता देवहुति का मुक्ति स्थान हे| सांख्ययोगाचार्य कपिल मुनि का जन्म स्थान हे| यहीं सरस्वती तट पर महर्षि दाधिचि का आश्रम हे| इस स्थान पर महाराजा मूलराज ने तत्कालीन उत्तर भारत या उदीच दिशा से 1037 अति उच्च विद्वान ब्राम्हणों को बुलवाकर सिद्धपुर में सरस्वती के तट पर रुद्रयाग (रुद्र यज्ञ) करवाया गया था| ओर मंदिर निर्माण प्रारभ किया था| ये ही सब अति विद्वान उत्तर दिशा से आने के कारण उदीच कालतर में सहस्त्र औदीच्य ब्राम्हणों के नाम से जाने गए| स्मरणीय हो की पूर्व में सभी ब्राम्हण ऋषियों के नाम से जाने जाते रहे थे पर जेसे जेसे ब्राम्हणों की संख्या व्रद्धि होती गई आदिगुरु शंकराचार्य जी ने देश-भेद स्थान भेद आदि द्वारा कान्यकुब्ज/सरयुपारीय आदि किया गया| इसी कड़ी में आगे औदीच्य ब्राम्हण भी कहलाए गए|
इस मंदिर का पूर्ण निर्माण चोथी पीड़ी में महाराज जयसिंह ने किया| इस समय महाराज जयसिंह द्वारा प्रजा का ऋण माफ किया गया ओर इसी अवसर पर नव संबत चलवाया जो आज भी सम्पूर्ण गुजरात मे चलता हे| ई॰ सन 2012 वर्ष मेँ गुजराती संबत 2058 [૨૦૫૮] हे| निरतर
इस रुद्र महालय में एक हजार पाँच सो स्तभ थे | माणिक मुक्ता युक्त एक हजार मूर्तियाँ थीं| इस पर तीस हजार स्वर्ण कलश थे| जिन पर पताकाएँ फहराती थी| रुद्र महालय में पाषाण पर कलात्मक "गज" एवं "अश्व" उत्कीर्ण थे| अगणित जालियाँ पत्थरो पर खुदी थीं|
कहा जाता हे यहाँ सात हजार धर्मशालाएँ थीं| इनके रत्न जटित द्वारों की छटा निराली थी | मध्य में एकादश रुद्र के एकादश मंदिर थे| वर्ष 995 में मूलराज ने रुद्रमहालय की स्थापना की थी | वर्ष 1150(ई॰स॰1094) में सिद्धराज ने रुद्र महालया का विस्तार करके "श्री स्थल" का "सिद्धपुर" नामकरण किया था|
महाराज मूलराज महान शिव भक्त थे| अपने परवर्ती जीवन में अपने पुत्र चावंड को राज्य सोप कर श्री स्थल (सिद्धपुर) में तपश्चर्या में व्यतीत किया| वहीं उनका स्वर्गवास हुआ|आज इस भव्य ओर विशाल रुद्रमहल को खण्डहर केआर रूप मे देखा जा सकता हे| विभिन्न आततायी आक्रमण कारी लुटेरे बादशाहों ने तीन बार इसे तोड़ा ओर लूटा| एक भाग में मस्जिद बना दी| इसके एक भाग को आदिलगंज (बाज़ार) का रूप दिया इस बारे में वहाँ फारसी ओर देवनागरी में शिलालेख हे|
जय रुद्र महालय (खण्ड काव्य)
डॉ॰ ओ॰ पी॰ व्यास गुना म॰ प्र॰ द्वारा रचित इस पुस्तक मे औदीच्य ब्रम्हाण समाज के गोरव सिद्धपुर गुजरात का रूद्र महल के निर्माण और विध्वंस की गाथा जो औदिच्य ब्राम्हणों की उत्त्पति की गाथा भी हे, इस काव्य मय वर्णन में मिलती हे|
10 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध मे गुजरात की राजधानी पाटन थी| महाराजा मूलराज सोलंकी प्रतापी राजा हुए थे | सिद्धपुर (श्री स्थल) प्राचीन सिद्धपीठ थी| महाराज मूलराज ने अपने मातुल (मामा) सामंत सिंह का वाढ कर पाटण की राजगद्दी प्राप्त की थी| सम्पूर्ण भारत के सर्वाधिक एश्वर्यशाली राज्य कायम किया| व्रद्धावस्था में पश्चाताप वश "रुद्र महालय" जिसमें एक सहस्त्र शिव लिंगो वाला एक सहस्त्र मंदिरों का विशाल रुद्र महालय या रुद्र की माला के समान मंदिर बनवाने का बनाने का का विचार उनके मन मे आया |
इस संबद्ध में निम्न पद प्रसिद्ध हे |
"सुत सोलंकी वंशनों, कपटेलीध्यों राज, रुद्रमाल आरम्भियों, पातक टलवावास|
संबत अग्यार से ओगणी से,सोलंकी सुत जाण,रुद्रमाल स्थापना माघ मास परमाण|
क्रष्ण पक्ष ने चतुर्दशी, वार सोम निरधार, शंकर सधरे पुणिया। नाम शंभू जुगधार|
सिद्धपुर पातक नाशनी पुण्य सलिला सरस्वती नदी के पावन तट पर स्थित हे| महर्षि कर्दम की तपोभूमि हे| जगन्माता देवहुति का मुक्ति स्थान हे| सांख्ययोगाचार्य कपिल मुनि का जन्म स्थान हे| यहीं सरस्वती तट पर महर्षि दाधिचि का आश्रम हे| इस स्थान पर महाराजा मूलराज ने तत्कालीन उत्तर भारत या उदीच दिशा से 1037 अति उच्च विद्वान ब्राम्हणों को बुलवाकर सिद्धपुर में सरस्वती के तट पर रुद्रयाग (रुद्र यज्ञ) करवाया गया था| ओर मंदिर निर्माण प्रारभ किया था| ये ही सब अति विद्वान उत्तर दिशा से आने के कारण उदीच कालतर में सहस्त्र औदीच्य ब्राम्हणों के नाम से जाने गए| स्मरणीय हो की पूर्व में सभी ब्राम्हण ऋषियों के नाम से जाने जाते रहे थे पर जेसे जेसे ब्राम्हणों की संख्या व्रद्धि होती गई आदिगुरु शंकराचार्य जी ने देश-भेद स्थान भेद आदि द्वारा कान्यकुब्ज/सरयुपारीय आदि किया गया| इसी कड़ी में आगे औदीच्य ब्राम्हण भी कहलाए गए|
इस मंदिर का पूर्ण निर्माण चोथी पीड़ी में महाराज जयसिंह ने किया| इस समय महाराज जयसिंह द्वारा प्रजा का ऋण माफ किया गया ओर इसी अवसर पर नव संबत चलवाया जो आज भी सम्पूर्ण गुजरात मे चलता हे| ई॰ सन 2012 वर्ष मेँ गुजराती संबत 2058 [૨૦૫૮] हे| निरतर
इस रुद्र महालय में एक हजार पाँच सो स्तभ थे | माणिक मुक्ता युक्त एक हजार मूर्तियाँ थीं| इस पर तीस हजार स्वर्ण कलश थे| जिन पर पताकाएँ फहराती थी| रुद्र महालय में पाषाण पर कलात्मक "गज" एवं "अश्व" उत्कीर्ण थे| अगणित जालियाँ पत्थरो पर खुदी थीं|
कहा जाता हे यहाँ सात हजार धर्मशालाएँ थीं| इनके रत्न जटित द्वारों की छटा निराली थी | मध्य में एकादश रुद्र के एकादश मंदिर थे| वर्ष 995 में मूलराज ने रुद्रमहालय की स्थापना की थी | वर्ष 1150(ई॰स॰1094) में सिद्धराज ने रुद्र महालया का विस्तार करके "श्री स्थल" का "सिद्धपुर" नामकरण किया था|
महाराज मूलराज महान शिव भक्त थे| अपने परवर्ती जीवन में अपने पुत्र चावंड को राज्य सोप कर श्री स्थल (सिद्धपुर) में तपश्चर्या में व्यतीत किया| वहीं उनका स्वर्गवास हुआ|आज इस भव्य ओर विशाल रुद्रमहल को खण्डहर केआर रूप मे देखा जा सकता हे| विभिन्न आततायी आक्रमण कारी लुटेरे बादशाहों ने तीन बार इसे तोड़ा ओर लूटा| एक भाग में मस्जिद बना दी| इसके एक भाग को आदिलगंज (बाज़ार) का रूप दिया इस बारे में वहाँ फारसी ओर देवनागरी में शिलालेख हे|
वर्तमान में रुद्रमहल के पूर्व विभाग के तोरण द्वार चार शिव मंदिर ओर ध्वस्त सूर्य कुण्ड हे | यह पुरातत्व विभाग के अधीन हे|
प्रस्तुत खंड काव्य में इस सबका सारा विवरण रोचक ओर काव्यात्मक किया गया हे| सिद्धपुर मे सम्पन्न हुए सहस्त्राब्दी महोत्सव के अवसर पर जगदगुरु शंकराचार्य श्री श्री निरंजन देव तीर्थ, गो भक्त शंभू महाराज, तत्कालीन शिक्षा मंत्री हेमा बहन आचार्य , गृह मंत्री प्रबोध भाई रावल श्री रश्मि त्रिवेदी [कोमुदी फिल्म निर्माता मुंबई],पुष्पेंद्र भट्ट बलवंत भाई, आदि अनेक विद्वानो ओर विशाल जन समूह के सम्मुख इस का वाचन लेखक डॉ ओ॰पी॰ व्यास गुना के द्वारा किया गया था| जिसे एक साठा बड़ी करतल ध्वनि से सराह गया ओर बाद मे लगभग सभी वक्ताओ ने प्रशंसा की|
इस हेतु डॉ ओ पी व्यास को विशेष रूप से सम्मानित भी किया गया था |
डॉ मधु सूदन व्यास
एम आई जी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन म।प्र।
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